भगन्दर रोग
भगंदर का सबसे पहला और ख़ास लक्षण यही है कि इस रोग में गुदा के पास फोड़े और फुंसियाँ निकल जाती है. यह अपने आप फूट जाता है। गुदा के पास की त्वचा के जिस बिंदु पर यह फूटता है, उसे भगन्दर की बाहरी ओपनिंग कहते हैं। इन फुंसियों में से बाद में धीरे धीरे पस और गैस निकलने लगती है. इन फुंसियों से निकलने वाली पस से रोगी के वस्त्र तक गंदे हो जाते है, बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें भगन्दर रोग गुदा के पास किसी फोड़े से शुरू होता हैं और ये फोड़ा गुदा में किसी इन्फेक्शन से हो सकता हैं।
फोड़े में दर्द और सूजन होनी शुरू होती हैं और कुछ लोगो को इसमें बुखार की भी शिकायत होती हैं। फोड़े में पीप (pus) भर जाती हैं जिसकी बजह से उस जगह पर एक नाली बन जाती हैं भगन्दर रोग ज्यादातर 30 से लेकर 50 तक की उम्र के लोगो में देखने को मिलता हैं भगन्दर का इलाज़ अगर ज्यादा समय तक ना करवाया जाये तो केंसर का रूप भी ले सकता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। भगन्दर रोग अधिक कष्टकारी होता है। यह रोग जल्दी खत्म नहीं होता है यह बवासीर से पीड़ित लोगों में अधिक पाया जाता है।
पुरानी कव्ज।
गुदामार्ग के पास फोड़े होना।
ज्यादा समय तक किसी सख्त या ठंडी जगह पर बैठना।
गुदामार्ग का अस्वच्छ रहना।
डिजिटल गुदा परीक्षण,फिस्टुलोग्राम भी कराया जाता हैं। फिस्टुला के मार्ग को देखने के लिए MRI की सलाह दी जाती हैं। ज़्यादा पानी पियें
पानी में जैसे जूस, नारियल पानी, छाछ, निम्बू पानी, लस्सी आवश्यक रूप से लेना चाहिए।
इस रोग में रोगी को नियमित रूप से पानी का सेवन करना चाहिए। पानी की कमी से शरीर के अंदर से गंदगी नहीं निकल पाती।
फलों का ख़ूब उपयोग करे
फल जैसे पपीता, केला, सेब, नाशपाती, तरबूज़, अमरुद और मौसमी फल बहुत आवश्यक हैं
रोगी को फलों का सेवन ज़रूर करना चाहिये, इसमें कई तरह के पौष्टिक तत्व पाए जाते है, जो इस रोग में बहुत मदद कर सकते हैं।
मल मूत्र को न रोके
ज्यादा समय तक मल मूत्ररोक कर रखने से मल सख्त और सुखा हो जाता हे,
अपने मल मूत्र का सही समय पर त्याग करें।
मल की जगह को साफ रखे।